1: कालीबंगा के आँगन में
कर दी
गयी चिनाई
एक- एक
ईंट को
जोड़कर
भटनेर के
दुर्ग की
आततायियों से
रक्षा के
लिए
न जाने
कितनी ही
कोमलांगियों के
नाजुक हाथों
ने
अपने वजूद
को बचाने
के लिए
अपने परिवार
के साथ।
कहते है
अभेद्य बना दिया
इसे
अपने खून-पसीने
से थापी
गयी
अनगिनत पक्की ईंटों
से
जिसे हमने सीखा
कालीबंगा के आँगन
में
एक-एक
बारीकी के साथ।
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न जाने
कितनी ही
पीढ़ियां गुजार दी
हमने पुरखों की
अपनी धरा, अपनी
आन-बान
में
अपनी पगड़ी, अपनी शान
बचाने में
खेत में
काम करते
दो हाथों
के लिए।
धान के
लहलाते खेत और
सोने की चमक
लिए गेहूं
की बालियां
उस नवोढ़ा
के घूँघट
की आड़
में
खिल उठे
थे खेत
में
धवल रूप
लिए कपास
के टिंडे
और ग्वार
की कच्ची
फलियां
हाँडियों में खुश्बू
को भरकर
तैयार करती थी
ईंट भट्ठों
के लिए
और राजशाही
तलवारों को चमकाने
के लिए।
इससे पहले यहां- वहां आपपास में
और लोगों के दिलों में,
केवल फर्क बना रहा
जागीरदारों और आमजन में
पर अपने वजूद के लिए
देनी पड़ती थी अपनी कुर्बानी
सीमाओं की रक्षा की खातिर
एक आम मजदूर को भी।